अजान इस्लाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह नमाज के लिए मुसलमानों को बुलाने का तरीका है, जो दिन में पांच बार मस्जिदों से गूंजती है.
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नमाज के लिए बुलावे की जरूरत
जब पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब मक्का से मदीना पहुंचे, तो वहां इस्लाम तेजी से फैलने लगा. मदीना में मस्जिद-ए-नबवी बनाई गई, जहां सामूहिक नमाज अदा की जाने लगी.
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अलग-अलग सुझाव
पैगंबर साहब ने अपने सहाबियों (साथियों) से इस बारे में राय मांगी. किसी ने कहा कि झंडा लहराया जाए, किसी ने सुझाव दिया कि आग जलाकर संकेत दिया जाए.
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ख्वाब में अजान का विचार
एक रात हजरत अब्दुल्लाह बिन जैद नाम के सहाबी ने ख्वाब देखा. इसमें उन्हें एक शख्स ने अजान के शब्द सिखाए, जो आज हम सुनते हैं "अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर...".
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पैगंबर साहब का फैसला
पैगंबर साहब को यह तरीका बेहद पसंद आया. उन्होंने इसे अल्लाह की ओर से इशारा माना. फिर उन्होंने हजरत अब्दुल्लाह बिन जैद को कहा कि ये शब्द हजरत बिलाल को सिखाएं, क्योंकि उनकी आवाज बहुत बुलंद और सुरीली थी.
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पहली अजान
हजरत बिलाल जो पैगंबर साहब के खास सहाबी और पहले मुक्त गुलाम थे, ने मस्जिद-ए-नबवी की छत पर चढ़कर पहली अजान दी.
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अजान का महत्व
हजरत बिलाल इस्लाम के पहले मुअज्जिन (अजान देने वाले) बने. अजान सिर्फ नमाज का बुलावा नहीं, बल्कि अल्लाह की महानता और एकता का ऐलान भी है.