Supreme Court Free Ration: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुफ्त सुविधाओं, विशेषकर मुफ्त राशन को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है. कोर्ट का कहना है कि मुफ्त राशन और धन की उपलब्धता के कारण लोग काम करने से कतराने लगे हैं. यह टिप्पणी शहरी बेघरों के आश्रय के अधिकार से संबंधित एक मामले में आई, जिससे यह सवाल खड़ा हुआ है कि क्या मुफ्त सुविधाएं लोगों को आलसी बना रही हैं और उनकी मेहनत करने की इच्छा को प्रभावित कर रही हैं.
कोर्ट की टिप्पणी और उसकी गंभीरता
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस समय आई जब अटॉर्नी जनरल ने शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन के तहत उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं की जानकारी दी. कोर्ट ने इस मामले में गंभीरता से विचार किया और यह निष्कर्ष निकाला कि मुफ्त राशन और अन्य मुफ्त सुविधाएं लोगों की कार्य करने की प्रेरणा को कमजोर कर सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर आगे विचार करने की आवश्यकता जताई और सुनवाई को स्थगित कर दिया.
शहरी बेघरों का आश्रय अधिकार
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट शहरी बेघरों के आश्रय के अधिकार पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें मुफ्त राशन और अन्य सामाजिक कल्याण योजनाओं का योगदान पर ध्यान केंद्रित किया गया. कोर्ट ने यह भी कहा कि मुफ्त सुविधाएं समाज में एक नया दृष्टिकोण उत्पन्न कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप कुछ वर्गों को श्रम के प्रति उदासीनता हो सकती है.
अटॉर्नी जनरल की जानकारी
अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन के बारे में जानकारी दी, जो शहरी क्षेत्रों में गरीबी से जूझ रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा चलाया जा रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि इस मिशन के तहत बेघरों को आश्रय और अन्य जरूरी सुविधाएं दी जाती हैं, ताकि उनका जीवन स्तर सुधारा जा सके. हालांकि, इस मिशन के प्रभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता जताई कि मुफ्त सुविधाओं का दुरुपयोग न हो.
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इस बात का संकेत है कि मुफ्त सुविधाओं का समाज पर क्या असर हो सकता है. जहां एक ओर ये योजनाएं गरीबों और जरूरतमंदों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं, वहीं दूसरी ओर इनका अत्यधिक उपयोग लोगों के श्रम करने की मानसिकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. अब यह देखना होगा कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट इस पर आगे किस तरह की रणनीतियां अपनाते हैं.