20 साल बाद शरद पवार की बिहार में एंट्री, पूर्णिया रैली से पार्टी को मिलेगा नया जीवन

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार 20 साल बाद बिहार की राजनीति में फिर से सक्रिय हो रहे हैं. इस बार उनका दौरा राजनीतिक लिहाज से खास है, क्योंकि शरद पवार की पार्टी बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रही है. शरद पवार, जो आखिरी बार 2005 में बिहार के पूर्णिया जिले में आए थे, अब 2025 में फिर से बिहार की पॉलिटिक्स में नया रंग भरने की कोशिश करेंगे.

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Courtesy: social media

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार 20 साल बाद बिहार की राजनीति में फिर से सक्रिय हो रहे हैं. इस बार उनका दौरा राजनीतिक लिहाज से खास है, क्योंकि शरद पवार की पार्टी बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रही है. शरद पवार, जो आखिरी बार 2005 में बिहार के पूर्णिया जिले में आए थे, अब 2025 में फिर से बिहार की पॉलिटिक्स में नया रंग भरने की कोशिश करेंगे.

बिहार में शरद पवार का दौरा

यह दौरा बिहार के लिए अहम है, क्योंकि शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी अब चुनावी मैदान में उतरने की योजना बना रही है. इससे पहले, 2014 में तारिक अनवर की लोकसभा चुनाव जीतने के बाद शरद पवार की पार्टी का बिहार में थोड़ा अस्तित्व था, लेकिन अब पार्टी अपनी ताकत फिर से इकट्ठा करने की कोशिश कर रही है. शरद पवार का यह कदम महागठबंधन के लिए चुनौती हो सकता है, खासकर अगर वह अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं.

पूर्णिया और कटिहार में रैली

शरद पवार पूर्णिया के अलावा अपने पुराने गढ़, कटिहार जिले में भी रैली करेंगे. इस दौरान उनके साथ उनकी बेटी सुप्रिया सुले और अन्य वरिष्ठ नेता भी होंगे. यह दौरा शरद पवार के लिए अपनी पार्टी को फिर से मजबूत करने और बिहार की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का एक बड़ा मौका है. शरद पवार की पार्टी ने यह तय नहीं किया है कि वह महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ेंगे या अकेले.

बिहार विधानसभा चुनाव और महागठबंधन की स्थिति

शरद पवार की पार्टी के बिहार में चुनावी हिस्सेदारी के फैसले से महागठबंधन की सीट एडजस्टमेंट पर असर पड़ सकता है. बिहार में राजद, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन है, और अगर एनसीपी महागठबंधन का हिस्सा बनती है, तो सीटों का बंटवारा एक जटिल मुद्दा हो सकता है. इसके अलावा, पवार की पार्टी अगर अकेले चुनाव लड़ेगी तो बिहार के राजनीतिक द्रश्य में एक नया मोड़ आ सकता है.

सीमांचल इलाके पर नजर

विशेषज्ञों का मानना है कि शरद पवार का सीमांचल क्षेत्र में आना एक रणनीतिक कदम हो सकता है, खासकर यहां के अल्पसंख्यक वोटों को साधने के लिए. सीमांचल में किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिले में अल्पसंख्यक वोट निर्णायक साबित होते हैं, और शरद पवार का यहां की राजनीति में दखल इस क्षेत्र में महागठबंधन के लिए चुनौती हो सकता है.

दबाव की राजनीति और पप्पू यादव का रोल

संजय उपाध्याय के अनुसार, शरद पवार का सीमांचल में आना राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश हो सकती है. कहा जा रहा है कि पप्पू यादव की भूमिका भी इस घटना में अहम हो सकती है, क्योंकि वह पर्दे के पीछे से महागठबंधन पर दबाव बना रहे हैं. यह एक तरह से महागठबंधन के भीतर की राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश हो सकती है.

शरद पवार का बिहार दौरा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना साबित हो सकता है, जो आगामी विधानसभा चुनावों के लिए बड़ा मोड़ साबित हो सकता है. शरद पवार की पार्टी की भूमिका, महागठबंधन के अंदर सीटों का बंटवारा और सीमांचल के अल्पसंख्यक वोटों पर प्रभाव आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति के मुख्य मुद्दे होंगे.

(इस खबर को सलाम हिन्दुस्तान की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)