Phoolan Devi Story: आज इतने सालों बाद भी फूलन देवी का नाम उतना ही प्रासंगिक और विवादित है, जितना उनके जीवनकाल में था. बेहमई हत्याकांड से लेकर उनकी हत्या तक, हर पहलू पर सवाल उठाए जाते हैं. क्या वो जातिगत अन्याय का बदला लेने वाली क्रांतिकारी थीं या 22 बेगुनाहों की हत्यारी? क्या उनकी कहानी पर बनी फिल्म बैंडिट क्वीन वाकई उनके जीवन को हूबहू दिखाती है या फिर ये भी एक राजनीतिक स्टंट था?
उनकी मौत के दो दशक बाद भी उनके नाम पर राजनीति हो रही है. एक तरफ उन्हें दलितों और महिलाओं की शक्ति का प्रतीक बताया जाता है, तो दूसरी तरफ उनके विरोधी उन्हें हत्यारी और डकैत मानते हैं. लेकिन इस रहस्यमयी कहानी की शुरुआत कहां से हुई?
बचपन और संघर्ष की शुरुआत
फूलन का जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के एक छोटे से गांव गोरहा का पुरवा में देवी दीन मल्लाह के घर हुआ था. सामाजिक रूप से पिछड़ी जाति में जन्मी फूलन को बचपन से ही जातिगत भेदभाव और गरीबी का सामना करना पड़ा. हालांकि मल्लाह समुदाय अनुसूचित जाति (एससी/एसटी) में नहीं बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आता है, फिर भी सामाजिक परिप्रेक्ष्य में इसे शूद्र जाति के रूप में देखा जाता है.
संघर्ष और कठिनाइयाँ फूलन के जीवन का शुरुआती हिस्सा बन गईं. महज 11 साल की उम्र में उनके चाचा ने जमीन विवाद के चलते चोरी के झूठे आरोप में उन्हें जेल भेज दिया. लेकिन यह उनके संघर्ष की शुरुआत भर थी. असली परीक्षा तब शुरू हुई जब उनकी शादी 33 साल के पुत्तीलाल मल्लाह से तय हुई.
ऐसे बनी बागी
यह शादी उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी. दहेज प्रताड़ना, मारपीट और शारीरिक शोषण से तंग आकर वह अपने माता-पिता के घर लौट आई, लेकिन लोक लाज के डर से परिवार ने उसे फिर उसी नर्क में भेज दिया. इस बीच उसके पति ने गौना की रस्म निभाने से इनकार कर दिया और फूलन गांव के लिए 'समस्या' बन गई.
गांव की पंचायत ने फैसला सुनाया कि फूलन को गांव छोड़ना होगा. रोते-बिलखते वह बेबस हालत में बीहड़ों की ओर निकल गई. कुछ महीने बाद जब वह अपने माता-पिता से मिलने गांव लौटी तो गांव वालों ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया.
पुलिस हिरासत में तीन दिन और तीन रात तक उसके साथ अमानवीय अत्याचार और बलात्कार किया गया. इस घटना ने उसके मन में समाज, पुलिस व्यवस्था और सरकारी तंत्र के प्रति गहरी नफरत भर दी. यही वह पल था जब फूलन के भीतर की पीड़ा ने विद्रोह का रूप ले लिया.
क्या है बीहड़ की कहानी
पुलिस से छूटने के बाद जब फूलन अपने घर पहुंची तो कुख्यात डकैत बाबू गुर्जर और उसके गिरोह ने उसे यह कहकर अपने साथ ले लिया कि उन्होंने उसे पुलिस से छुड़ाया है. लेकिन यहां भी उसका शोषण हुआ. गिरोह के सरगना बाबू गुर्जर ने उसके साथ बलात्कार किया. हालांकि गिरोह के दूसरे सदस्य विक्रम मल्लाह ने बाबू गुर्जर की हत्या कर दी और गिरोह का नया सरगना बन गया.
विक्रम फूलन का सम्मान करता था और ठाकुरों के अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई में उसका साथ देता था. लेकिन यह शक्ति श्रीराम ठाकुर गिरोह को बर्दाश्त नहीं हुई. एक दिन जब विक्रम मल्लाह अपने साथियों के साथ था, तो श्रीराम ठाकुर ने पुलिस की मदद से उसे घेर लिया और बेरहमी से उसकी हत्या कर दी.
बेहमई हत्याकांड
फूलन देवी के मुताबिक विक्रम की हत्या के बाद श्रीराम ठाकुर और उसके गिरोह ने उसका अपहरण कर लिया और कई दिनों तक उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया. यह घटना बेहमई गांव के पास हुई थी. इसके बाद फूलन ने अपने गिरोह को इकट्ठा करके 14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव पर हमला कर दिया.
दो घंटे तक गांव में दहशत का माहौल रहा. 22 लोगों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी गई, जिसमें 17 ठाकुर, 1 मुस्लिम, 1 दलित और 1 मौर्य जाति का व्यक्ति शामिल था. इस हमले में 6 महीने की बच्ची को भी झूले से फेंक दिया गया, जिससे वह 10 साल की उम्र तक विकलांग होकर मर गई.
आत्मसमर्पण और राजनीति
बेहमई हत्याकांड के बाद फूलन देवी पुलिस से बचती रही, लेकिन 1983 में उसने मध्य प्रदेश के भिंड जिले में हजारों लोगों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उसने शर्तें रखीं कि उसे फांसी नहीं दी जाएगी, उसके गिरोह के सदस्यों को फर्जी मुठभेड़ में नहीं मारा जाएगा और उसके परिवार को सुरक्षा दी जाएगी. उन्हें 11 साल जेल में बिताने पड़े. 1994 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उनके खिलाफ दर्ज अधिकांश मामलों को वापस ले लिया और उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.
1996 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और सांसद बनीं. 1998 में वे हार गईं, लेकिन 1999 में फिर से सांसद चुनी गईं. 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उनके सरकारी आवास के बाहर शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की गोली मारकर हत्या कर दी. राणा ने दावा किया कि उसने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है. उनकी हत्या ने फूलन देवी की कहानी को और भी जटिल बना दिया.