Isro Space Docking : 16 जनवरी 2025 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी यानी ISRO ने ऐसी उड़ान भरी कि दुनिया देखती रह गई। अंतरिक्ष में एक ऑर्बिट में घूम रहे दो उपग्रहों को इसने सफलता पूर्वक जोड़ दिया। वैज्ञानिक भाषा में इसे डॉकिंग कहा जाता है। दो उपग्रहों को अलग करने की तकनीक यानी अनडॉकिंग तो इसरो के पास तो पहले से थी लेकिन दो सैटेलाइट को आपस में जोड़ने की तकनीक उसके पास नहीं थी लेकिन अपने कड़ी मेहनत एवं लगन के दम पर उसने यह मुकाम हासिल कर लिया। इसरो की यह कामयाबी बहुत बड़ी है। इस सफलता ने दुनिया में उसका कद तो ऊंचा किया ही है, इसने भारत को एलीट क्लब में भी शामिल कर दिया है। स्पेस में सैटेलाइट डॉकिंग की तकनीक अभी तक अमेरिका, रूस और चीन के पास थी लेकिन अब यह तकनीक और काबिलयत भारत के पास आ गई है। डॉकिंग का सामर्थ्य रखने वाला भारत अब दुनिया का चौथा देश बन गया है.
आइए अब जानते हैं कि आखिर क्या था यह मिशन। बीते 30 दिसंबर 2024 को इसरो ने श्रीहरिकोटा से दो सैटेलाइट लॉन्च किए। इसे स्पेडेक्स मिशन नाम दिया गया। इन दोनों उपग्रहों को पीएसएलवी-सी 60 की मदद से पृथ्वी से 475 किलोमीटर ऊपर प्रक्षेपित किया। इस मिशन में एसडीएक्स-1 और एसडीएक्स-2 उपग्रहों को आपस में जोड़ना था। पृथ्वी की कक्षा में दोनों उपग्रहों स्थापित होने के बाद सैटेलाइट एसडीएक्स 1 चेजर और एसडीएक्स 2 टारगेट को 20 किलोमीटर तक करीब लाया गया। फिर इनके बीच दूरी धीरे-धीरे तीन मीटर तक कम की गई। दो उपग्रहों को बेहद करीब लाने का यह मिशन बहुत ही जटिल, चुनौतीपूर्ण और पेचीदगियों वाला था। थोड़ी सी चूक इस पूरे मिशन पर पानी फेर देती लेकिन इसरो की सूझबूझ और उसका अनुभव इस खास मिशन में काम आया। खास बात यह है कि इन दोनों उपग्रहों को इस पूरे मिशन के दौरान धरती से ही नियंत्रित किया गया।
भारत के आगामी स्पेस मिशनों के लिए सैटेलाइट डॉकिंग का सफल होना बेहद जरूरी था। चंद्रयान-4, गगनयान मिशन हो या भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना, इन सभी मिशनों में सैटेलाइट डॉकिंग की तकनीक की जरूरत पड़ेगी। चंद्रयान -4 में चंद्रमा की सतह से सैंलपिंग लाने में डॉकिंग और अनडॉकिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल होना है। गगनयान मिशन जिसके तहत इंसान को अंतरिक्ष में भेजा जाना है, उसमें भी यह तकनीक काम आएगी। इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन मिशन के लिए भी डॉकिंग तकनीक की जरूरत पड़ेगी। कहने का मतलब है कि भारत के आगे जितने भी स्पेस मिशन होंगे, उनमें डॉकिंग तकनीक का रोल बहुत बड़ा होगा।
अभी तक इस तकनीक के महारथी तीन देश अमेरिका, रूस और चीन ही थे। अमेरिका ने 1966 में यह तकनीक हासिल की। उसका जेमिनी-8 डॉकिंग करने वाला पहला मिशन था। इसके बाद सोवियत संघ 1967 में यह तकनीक हासिल की। उसका कोसमोस 186 और 188 ने यह उपलब्धि हासिल की। फिर चीन ने 2011 में शेनझोउ 8 अंतरिक्ष यान ने तियागोंग-1 अंतरिक्ष प्रयोगशाला के साथ डॉकिंग की।
कुल मिलाकर डॉकिंग की इस सफलता ने भारत के अंतरिक्ष मिशन को अगले स्तर में पहुंचा दिया है। भारत अब अपने उन स्पेस मिशनों पर काम तेज करेगा जिसका आधार ही डॉकिंग है। इसरो की इस अनूठी सफलता ने पूरा देश का सीना चौड़ा कर दिया है। लोग गर्व का अनुभव कर रहे हैं। इसरो की इस सफलता प्रधानमंत्री मोदी ने कहा-उपग्रहों की अंतरिक्ष में डॉकिंग के सफल प्रदर्शन के लिए इसरो के हमारे वैज्ञानिकों और पूरे अंतरिक्ष समुदाय को बधाई। यह आने वाले वर्षों में भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसरो की प्रशंसा करते हुए केंद्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा-बधाई इसरो। आखिरकार हमने कर दिखाया। स्पेडेक्स ने अविश्वसनीय कार्य किया है... ‘डॉकिंग’ पूरी हो गई है और यह पूरी तरह स्वदेशी ‘भारतीय डॉकिंग प्रणाली’है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी इस कामयाबी के लिए इसरो को बधाई दी। खरगे ने कहा-हमें इसरो के वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष इंजीनियरों के असाधारण काम पर बेहद गर्व है क्योंकि उन्होंने स्पेडेक्स मिशन के तहत उपग्रह ‘डॉकिंग’ को सफलतापूर्वक पूरा किया।
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