Bhimrao Ambedkar Jayanti 2025: डॉ. भीमराव अंबेडकर को आधुनिक भारत के निर्माता और संविधान निर्माता के रूप में जाना जाता है. उन्होंने अपने जीवन में जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लंबा संघर्ष किया. उनका उद्देश्य था समाज में समानता और सभी वर्गों को बराबरी का अधिकार दिलाना.
पहली पत्नी रमाबाई के निधन के बाद दूसरी शादी
डॉ. अंबेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का निधन 1935 में हो गया था. इसके बाद उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को डॉ. सविता कबीर से दूसरी शादी की. यह शादी काफी चर्चा में रही क्योंकि सविता ब्राह्मण समुदाय से थीं, जबकि डॉ. अंबेडकर दलित समुदाय से ताल्लुक रखते थे. इस शादी को लेकर उनके परिवार और कुछ सहयोगियों में नाराजगी भी देखी गई.
पढ़ी-लिखी और समर्पित जीवनसाथी
डॉ. सविता कबीर पुणे के एक मराठी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं. उन्होंने अपनी पढ़ाई पुणे में की और बाद में मुंबई से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की. वे एक डॉक्टर के रूप में कार्यरत थीं और 1947 में डॉ. अंबेडकर के इलाज के सिलसिले में उनसे मिलीं. उस वक्त डॉ. अंबेडकर को कई स्वास्थ्य समस्याएं थीं, जिनमें नींद न आना और पैरों में लगातार दर्द शामिल था.
इलाज के दौरान बढ़ी नजदीकियां
जब डॉ. अंबेडकर भारतीय संविधान के मसौदे पर काम कर रहे थे, तब उनकी तबीयत काफी खराब रहने लगी थी. डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि उन्हें ऐसा साथी चाहिए जो न केवल उनकी सेवा कर सके, बल्कि मेडिकल जानकारी भी रखता हो. डॉ. सविता ने बड़ी निष्ठा से उनकी देखभाल की. इसी दौरान दोनों के बीच भावनात्मक संबंध गहरे हुए और अंबेडकर ने सविता को विवाह का प्रस्ताव दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया.
परिवार की नाराजगी और आरोप
शादी के बाद डॉ. अंबेडकर के कुछ करीबी और परिजन इस रिश्ते से खुश नहीं थे. उनकी नाराजगी वर्षों तक बनी रही. डॉ. अंबेडकर की मृत्यु (6 दिसंबर 1956) के बाद, सविता पर संपत्ति और अन्य मामलों को लेकर कुछ आरोप भी लगे, लेकिन वे सार्वजनिक रूप से ज्यादा चर्चित नहीं हुए.
सविता का समर्पण और समर्थन
डॉ. सविता अंबेडकर ने न केवल डॉक्टर के रूप में बल्कि एक समर्पित पत्नी और सहयोगी के रूप में डॉ. अंबेडकर के जीवन के अंतिम वर्षों में उनका भरपूर साथ दिया. उन्होंने अंबेडकर के सामाजिक आंदोलनों में भी भाग लिया और उनके विचारों का समर्थन किया.