MP High Court News: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि पति द्वारा अपनी पत्नी को नौकरी छोड़ने और अपनी मर्जी से जीने के लिए मजबूर करना 'क्रूरता' की श्रेणी में आता है. इस आधार पर कोर्ट ने महिला को तलाक की अनुमति दे दी. मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की खंडपीठ ने इस फैसले में निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए स्पष्ट किया कि जीवनसाथी पर इस तरह का दबाव कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है.
सरकारी नौकरी कर रही थी महिला
यह मामला इंदौर की एक महिला से जुड़ा है, जो सरकार के एक विभाग में प्रबंधक के रूप में कार्यरत है. उसने कुटुंब न्यायालय में आरोप लगाया था कि उसका पति उसे नौकरी छोड़कर भोपाल में उसके साथ रहने के लिए मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा है. पहले कुटुंब न्यायालय ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन पीड़िता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी. 13 नवंबर को सुनाए गए फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि पति या पत्नी को अपनी मर्जी से जीने का अधिकार है. जीवनसाथी को नौकरी छोड़ने या किसी विशेष नौकरी करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
‘पति के अहंकार को ठेस पहुंची’
महिला के वकील राघवेंद्र सिंह रघुवंशी ने बताया कि 2014 में शादी के बाद दंपति भोपाल में रहकर सरकारी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. 2017 में महिला को सरकारी नौकरी मिल गई, लेकिन पति को रोजगार न मिलने से वह असहज हो गया.
उन्होंने कहा कि पति ने अपनी बेरोजगारी के चलते पत्नी पर दबाव डाला कि वह भी नौकरी न करे. जब पत्नी इसके लिए तैयार नहीं हुई, तो मतभेद बढ़ गए और पति ने मानसिक प्रताड़ना शुरू कर दी. आखिरकार, महिला ने तलाक लेने का निर्णय लिया.