India's position in AI: चीन ने डीपसीक के ज़रिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में अपनी मज़बूत स्थिति स्थापित कर ली है. अब तक दुनिया की फैक्ट्री के तौर पर जाना जाने वाला चीन अब LLM (लार्ज लैंग्वेज मॉडल) फैक्ट्री बनने की ओर बढ़ रहा है. यह पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम लागत पर अत्याधुनिक AI मॉडल विकसित कर रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि DeepSeek हमारी इंडस्ट्रीज के लिए एक चेतावनी है कि हमें प्रतिस्पर्धा पर पूरी तरह केंद्रित होना होगा. OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने भी DeepSeek की सराहना की. उन्होंने X पर लिखा कि एक नए प्रतियोगी का आना रोमांचक है. DeepSeek का R1 प्रभावशाली मॉडल है, खासकर जिस कीमत पर इसे उपलब्ध कराया गया है.
दो राहों पर बहस
चीन की इस तकनीकी बढ़त के जवाब में भारत दो धड़ों में बंटा हुआ दिखता है. एक पक्ष चाहता है कि देश अपना स्वदेशी LLM विकसित करे, जबकि दूसरा पक्ष छोटे भाषा मॉडल (SLMs) पर ध्यान केंद्रित करने की वकालत करता है, जो विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी होंगे. भारतीय स्टार्टअप Sarvam AI ने 2 अरब पैरामीटर्स पर अपना प्लेटफॉर्म विकसित किया, जिसमें भारतीय भाषाओं पर जोर दिया गया. दूसरी ओर, DeepSeek R1 को 671 अरब पैरामीटर्स पर प्रशिक्षित किया गया है और इसका कोई विशिष्ट उपयोग-केस नहीं है.
भारत की क्षमताएं और आगे की राह
जूलिया प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के सह-निर्माता और UIDAI आधार परियोजना से जुड़े वायरल शाह का मानना है कि भारत के पास पूंजी, प्रतिभा और तकनीकी क्षमता है. उन्होंने कहा कि भारत में वैश्विक वेंचर कैपिटल (VC) फर्मों की मौजूदगी है और एनवीडिया व इंटेल के कई चिप्स भारत में डिज़ाइन किए जाते हैं. हमें पूरी AI इकोसिस्टम को मजबूत करना होगा, व्यापार सुगमता में सुधार करना होगा, उच्च शिक्षा पर ध्यान देना होगा और डीप-टेक अनुसंधान पर अधिक खर्च करना होगा. शाह ने यह भी जोड़ा कि भारतीय स्टार्टअप्स और उद्योगपतियों को बड़े पैमाने पर निवेश करने की जरूरत है. "कम बजट होना कोई बहाना नहीं हो सकता कि हम इस क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ न बनें.
इंफ्रास्ट्रक्चर और उच्च निवेश की जरूरत
गार्टनर के एआइ विशेषज्ञ अरुण चंद्रशेखरन कहते हैं कि भारत को कोर रिसर्च में निवेश बढ़ाने की जरूरत है. एडवांस्ड डेटा सेंटर, कंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और कूलिंग तकनीक पर खर्च बढ़ाना जरूरी है. हमें अपने सबसे बुद्धिमान लोगों को एक मंच पर लाना होगा और उन्हें अत्याधुनिक संसाधन मुहैया कराने होंगे. शायद यह एआइ की वैश्विक दौड़ में भारत को आगे ले जाने का जादुई फार्मूला साबित हो. चीन एआइ के क्षेत्र में नई क्रांति ला रहा है, तो अमेरिका भी सतर्क हो गया है. भारत के पास एआइ के लिए पूंजी और प्रतिभा तो है, लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिए उसे रिसर्च, इंफ्रास्ट्रक्चर और उच्च निवेश की जरूरत है. क्या भारत इस चुनौती का सामना कर पाएगा? यह आने वाले सालों में तय होगा.