क्या जोड़ों के दर्द से लगाया जा सकता है मौसम का अंदाजा? क्या कहता है विज्ञान?

इस विषय पर अभी भी शोध जारी है और मौसम के प्रभाव से जोड़ों के दर्द में बदलाव के वैज्ञानिक प्रमाणों का इंतजार है. जो लोग इस तरह के दर्द का अनुभव करते हैं, उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे विशेषज्ञ से सलाह लें और खुद को इस मौसम में विशेष देखभाल से सुरक्षित रखें.

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Courtesy: social media

इस विषय पर अभी भी शोध जारी है और मौसम के प्रभाव से जोड़ों के दर्द में बदलाव के वैज्ञानिक प्रमाणों का इंतजार है. जो लोग इस तरह के दर्द का अनुभव करते हैं, उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे विशेषज्ञ से सलाह लें और खुद को इस मौसम में विशेष देखभाल से सुरक्षित रखें.

सदियों से लोग दावा करते रहे हैं कि उनके जोड़ों के दर्द से मौसम में होने वाले बदलावों का अंदाजा लगाया जा सकता है, अकसर बारिश या सर्दी के मौसम से पहले वे तकलीफ बढ़ने की बात कहते हैं. दर्द के पैमाने और अवधि को देखते हुए ये दावे सही भी लगते हैं, लेकिन वैज्ञानिक रूप से अब भी इसको लेकर विरोधाभास हैं.

वायुमंडलीय दाब में बदलाव से लेकर तापमान में उतार-चढ़ाव तक, कई सिद्धांतों से यह समझने का प्रयास किया जाता है कि पर्यावरणीय कारक जोड़ों के दर्द को कैसे प्रभावित कर सकते हैं. लेकिन क्या इस दावे का कोई आधार है, या यह सिर्फ मौसम से जुड़ा एक मिथक है? क्या हमारे शरीर के जोड़ मौसम विभाग से ज्यादा विश्वसनीय हैं?

जोड़ों के दर्द और मौसम का संबंध

इस बहस के केंद्र में, पृथ्वी के वायुमंडल में, वायु के अणुओं द्वारा लगाया जाने वाला बल यानी वायुमंडलीय दाब है. वायु भले ही अदृश्य होती है, लेकिन उसका भी द्रव्यमान (मास) होता है, और हम पर दबाव डालने वाला “भार” ऊंचाई और मौसम प्रणालियों के आधार पर बढ़ता-घटता रहता है.

वायुमंडलीय दाब उच्च होने पर अकसर साफ आसमान और हवाएं शांत होती हैं, जो अच्छी मौसमी स्थिति का संकेत होता है, जबकि निम्न दाब आमतौर पर अस्थिर मौसम, जैसे बादल छाए रहने, वर्षा और आर्द्रता का संकेत देता है.

गतिशील जोड़ों की संरचना जटिल होती है, जो श्लेष द्रव (सिनोवियल फ्लूड) के कारण गद्देदार होती हैं. ‘सिनोवियल फ्लूड’ एक चिपचिपा तरल पदार्थ होता है, जो जोड़ों को चिकना बनाता है. स्वस्थ जोड़ों में ये घटक सुचारू रूप से अपना काम करते हैं और जोड़ों में दर्द नहीं होता. हालांकि, जब जोड़ों की उपास्थि को ‘ऑस्टियोआर्थराइटिस’ जैसी समस्या के दौरान क्षति होती है या संधिवात गठिया की वजह से सूजन होती है, तो पर्यावरण में सूक्ष्म परिवर्तन भी तीव्रता से महसूस किए जा सकते हैं.

एक प्रमुख परिकल्पना यह बताती है कि वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन सीधे तौर पर जोड़ों की तकलीफ को प्रभावित कर सकता है. जब तूफान से पहले वायुमंडलीय दाब कम हो जाता है, तो इससे जोड़ों के अंदर सूजन वाले ऊतकों में थोड़ी बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे आसपास की नसों पर तनाव बढ़ सकता है और दर्द में वृद्धि होने की आशंका रहती है. इसके विपरीत, दाब में तीव्र वृद्धि, जो मौसम की विशेषता है, पहले से ही संवेदनशील ऊतकों को संकुचित कर सकती है, जिससे कुछ लोगों को असुविधा हो सकती है.

इसके अलावा, ‘आर्थराइटिस रिसर्च एंड थेरेपी’ में 2011 में एक व्यवस्थित समीक्षा के दौरान संधिवात गठिया (रूमेटाइड आर्थराइटिस) के रोगियों में मौसम और दर्द के बीच संबंधों की पड़ताल की गई. इस पड़ताल में अत्यधिक परिवर्तनशील प्रतिक्रियाओं का खुलासा हुआ. एक ओर कुछ लोगों ने कम वायुमंडलीय दाब की स्थिति में दर्द में वृद्धि होने की बात कही तो दूसरी ओर दूसरे लोगों ने कोई बदलाव नहीं देखा. कुछ लोगों ने उच्च दाब के दौरान भी असुविधा का अनुभव किया.

जानिए क्या है पूरा मामला?

हाल ही में, (2019 मनुष्य-विज्ञान परियोजना) ‘क्लाउडी विद अ चांस ऑफ पेन’ में दर्द का पता लगाने के लिए ऐप का इस्तेमाल किया गया. अध्ययन में गिरते वायुमंडलीय दाब और बढ़े हुए जोड़ों के दर्द के बीच एक मामूली संबंध पाया गया, लेकिन इसने लोगों के मौसम से संबंधित दर्द को महसूस करने के तरीके में पर्याप्त व्यक्तिगत अंतर को भी उजागर किया.

इन निष्कर्षों से पता चलता है कि हालांकि वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन कुछ लोगों के जोड़ों के दर्द को प्रभावित कर सकता है, लेकिन प्रतिक्रियाएं एक समान नहीं होतीं. प्रतिक्रियाएं कारकों की जटिल अंतर्क्रिया पर निर्भर करती हैं, जिसमें व्यक्ति के जोड़ों की आंतरिक स्थिति और समग्र दर्द संवेदनशीलता शामिल है.

क्यों अलग-अलग होती हैं प्रतिक्रियाएं?

वायुमंडलीय दाब शायद ही कभी अलग-थलग तरीके से काम करता है. तापमान और आर्द्रता में उतार-चढ़ाव अकसर दाब में बदलाव के कारण होता है, जिससे स्थिति जटिल हो जाती है. ठंड के मौसम का जोड़ों पर बहुत ज्यादा असर हो सकता है, खास तौर पर जोड़ों की मौजूदा समस्याओं से पीड़ित लोगों पर. कम तापमान की वजह से मांसपेशियां सिकुड़कर सख्त हो जाती हैं, जिससे लचीलापन कम हो सकता है और तनाव या परेशानी का जोखिम बढ़ सकता है.

हड्डियों को एक-दूसरे से जोड़ने वाले ‘लिगामेंट्स’ और मासपेशियों को हड्डियों से जोड़ने वाले ‘टेंडन’ में भी ठंडी परिस्थितियों के कारण लचक कम हो सकती है. यह कम लचीलापन जोड़ों की हरकत को और अधिक सीमित महसूस करा सकता है और गठिया जैसी स्थितियों में दर्द को बढ़ा सकता है.

ठंडे मौसम के कारण रक्त वाहिकाएं भी संकरी हो सकती हैं – विशेष रूप से हाथ-पैरों में, क्योंकि शरीर मुख्य तापमान को बनाए रखने को प्राथमिकता देता है.

विज्ञान और दर्द के पैटर्न में विरोधाभास

रक्त प्रवाह में कमी के कारण शरीर के प्रभावित हिस्सों में आवश्यक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी हो सकती है, जिससे ‘लैक्टिक एसिड’ जैसे मेटाबॉलिक अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन की प्रक्रिया धीमी हो सकती है. ये पदार्थ ऊतकों में जमा हो सकते हैं और सूजन व तकलीफ को बढ़ा सकते हैं.

सूजन की समस्या से ग्रस्त लोगों में, रक्त संचार में कमी के कारण सूजन और अकड़न बढ़ सकती है, विशेष रूप से उंगलियों और पैर के अंगूठों जैसे छोटे जोड़ों में.

ठंड से सिनोवियल लिक्विड की गतिविधि भी धीमी हो जाती है. कम तापमान में, घर्षण को कम करने में द्रव कम प्रभावी हो जाता है, जिससे ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्या से जूझ रहे लोगों के जोड़ों की अकड़न बढ़ सकती है.

तापमान में अचानक होने वाले बदलाव भी इसमें भूमिका निभा सकते हैं. तेजी से होने वाले बदलाव शरीर की अनुकूलन क्षमता को चुनौती दे सकते हैं, जिससे पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों में दर्द और भी बढ़ सकता है. इसी तरह, उच्च आर्द्रता पहले से ही सूजन वाले हिस्सों में गर्मी या नमी की अनुभूति को और भी तीव्र कर सकती है, जिससे दर्द का अनुभव और भी जटिल हो सकता है.

वैज्ञानिक अध्ययन और शोध

मौसम के प्रति प्रतिक्रियाएं व्यक्तिगत कारकों पर भी निर्भर करती हैं, जिसमें जोड़ों की क्षति की सीमा, समग्र दर्द संवेदनशीलता और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाएं शामिल हैं. इस परिवर्तनशीलता के कारण किसी एकल मौसम संबंधी कारक को जैविक प्रतिक्रिया से जोड़ना मुश्किल होता है.

फिर भी, साक्ष्य बताते हैं कि जोड़ों की समस्या से ग्रस्त लोग पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों, विशेषकर वायुमंडलीय दाब में उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.

हालांकि, मौसम और जोड़ों के दर्द के बीच संबंध अब भी वैज्ञानिक रूप से अधूरा है, लेकिन सामूहिक साक्ष्य संकेत देते हैं कि इस सदियों पुरानी मान्यता में कुछ सच्चाई हो सकती है. जिन लोगों को जोड़ों की पुरानी बीमारी है, उनके लिए वायुमंडलीय दाब में बदलाव और मौसम में होने वाले परिवर्तन वास्तव में प्रकृति की चेतावनी प्रणाली के रूप में काम कर सकते हैं. हालांकि यह पूरी तरह से साबित नहीं है.