क्या 'बौद्धिक कमी' वाली महिला को मां बनने का अधिकार नहीं है? बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा सवाल

बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को 21 सप्ताह की गर्भवती महिला के मातृत्व के अधिकार पर सवाल उठाए. महिला को सीमांत बौद्धिक कमी का मामला बताया गया है. कोर्ट ने पूछा कि क्या बौद्धिक कमी के कारण किसी महिला को मां बनने का अधिकार नहीं होना चाहिए.

Date Updated
फॉलो करें:

Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को 21 सप्ताह की गर्भवती महिला के मातृत्व के अधिकार पर सवाल उठाए. महिला को सीमांत बौद्धिक कमी का मामला बताया गया है. कोर्ट ने पूछा कि क्या बौद्धिक कमी के कारण किसी महिला को मां बनने का अधिकार नहीं होना चाहिए.

महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं

न्यायमूर्ति आर वी घुगे और राजेश पाटिल की खंडपीठ ने जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें महिला को मानसिक रूप से स्वस्थ बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, महिला का IQ स्तर 75 है, लेकिन गर्भ में कोई विकृति नहीं पाई गई. अदालत ने कहा कि सभी लोग अतिसु Intelligent नहीं होते. हर व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता अलग होती है. कम बौद्धिक स्तर का होना मातृत्व अधिकार छीनने का कारण नहीं हो सकता.

गर्भपात के लिए पिता ने की याचिका

महिला के पिता ने अदालत में याचिका दायर कर गर्भपात की अनुमति मांगी थी. उनका कहना था कि उनकी बेटी अविवाहित है और मानसिक रूप से अस्वस्थ है. हालांकि, महिला ने गर्भपात से इनकार करते हुए अपनी गर्भावस्था जारी रखने की इच्छा जताई. अदालत ने 3 जनवरी को मेडिकल बोर्ड से महिला और उसके गर्भ की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी थी.

महिला की सहमति

मेडिकल बोर्ड ने महिला को गर्भावस्था जारी रखने के लिए फिट पाया, लेकिन कहा कि गर्भपात भी संभव है. सरकारी वकील प्राची टाटके ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि महिला की सहमति जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि कानून के मुताबिक 20 हफ्ते बाद अगर महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ है तो गर्भपात पर विचार किया जा सकता है.

महिला के गोद लिए जाने की जानकारी सामने आने पर हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों के हितों की रक्षा करें. कोर्ट ने महिला के माता-पिता से अपील की कि वे उस व्यक्ति से संपर्क करें जिसके साथ महिला का रिश्ता था, और शादी की संभावना पर विचार करें.