सुन्नी या शिया! हिज्बुल्लाह चीफ की मौत पर कुछ इस्लामिक देश क्यों मना रहे जश्न? जानिए पूरी कहानी

Hassan Nasrallah Death: 27 सितंबर को इजरायल ने हिजबुल्लाह के मुख्यालय पर हवाई हमला किया जिसमें हिजबुल्लाह प्रमुख नसरल्लाह और उसके सभी शीर्ष कमांडो मारे गए. इस घटना के बाद कुछ इस्लामी देश शोक मना रहे हैं जबकि सीरिया के सुन्नी मुसलमान उसकी मौत का जश्न मना रहे हैं.

Date Updated
फॉलो करें:
Courtesy: Credit: Google

Hezbollah Chief Hassan Nasrallah: अब इजराइल और लेबनान के बीच संघर्ष कुछ दिनों के लिए थम गया है. दरअसल, इजराइल ने 27 सितंबर को बेरूत में हिजबुल्लाह के मुख्यालय को निशाना बनाया था. इस हमले में हिजबुल्लाह को बड़ा नुकसान हुआ है. इसके प्रमुख हसन नसरल्लाह समेत इसके सभी बड़े कमांडर मारे गए. एक तरफ जहां कुछ मुस्लिम देश नसरल्लाह की मौत पर शोक मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सीरिया के सुन्नी मुसलमान इस घटना पर शोक मना रहे हैं.

कैसे हुई थी इस युद्ध की शुरुआत 

साल 2000 में इजरायली सेना दक्षिणी लेबनान से वापस भाग गई और इसके पीछे का कारण नसरल्लाह ही था, इसके बाद से कुल 18 साल तक वो वही पर टिका रहा. साल 2006 का युद्ध उसको नायक मानने वालों के लिए सबसे बड़ा कारण था. उस दौरान युद्ध 33 दिन तक चला और आखिरी में इजरायल को वापस जाना पड़ा था. इस युद्ध की शुरुआत माना जाता है कि जब हिज्बुल्लाह के लड़ाकों ने इजरायल की सीमा में घुसकर उनके दो सैनिको को उठाकर ले गए. इस युद्ध के बाद अरब वर्ल्ड में एकमात्र ऐसे नेता जिसको सम्मानित किया और वो था नसरल्लाह, जिसके बाद वो इजरायल का दुश्मन बन गया. 

नसरल्लाह अकसर ऐसे संघर्षों में अपने संगठन के साथ रहा जिसने इस्लामिक वर्ल्ड को सुन्नी-शिया में बाटने का काम किया. वही अगर बात ईरान की करें तो ये शिया बाहुल्य देश है. व्ही मिडिल ईस्ट में सऊदी अरब समेत सुन्नी बाहुल्य देश है. जब भी शिया और सुन्नी देश में विवाद हुआ तो नसरल्लाह शिया के तरफ से रहा. 

कैसे बढ़ा हिज्बुल्लाह का पावर 

फिलीस्तीनी मुद्दे के बाद हसन नसरल्ला ने धीरे-धीरे लेबनान में अभी पकड़ बना ली थी. फिर साल 2005 का वो दौरा आया जब पूर्व प्रधानमंत्री रफीक हरीरी की हत्या कर दी गई. हरीरी को पश्चिम-समर्थक और लोकप्रिय सुन्नी राजनेता माना जाता था. एक  इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल ने इस जानकारी दी की उनकी हत्या हिज्बुल्लाह ने की थी. इस घटना के बाद हिज्बुल्लाह के लड़कों ने बेरुत के सुन्नी इलाकों पर कब्ज़ा जमा लिया और जब एक नई सरकार नहीं बनी पीछे नहीं हटे.

इस घटना के बाद हिज्बुल्लाह और भी पावर में आ गया. साल 2008 तक इन्होने अपना साम्राज्य ट्यूनीशिया और मिस्र तक फैला लिया. इन देशों में जनता ने विद्रोह कर तानाशाही शासन को उखाड़ फेंका, इसे अरब स्प्रिंग कहा गया. वर्ष 2011 तक अरब स्प्रिंग का असर सीरिया में दिखने लगा. सीरिया सुन्नी मुस्लिम बहुल देश है, जहां शिया मुसलमान अल्पसंख्यक हैं. वहां इसी आधार पर मार्च 2011 में गृहयुद्ध शुरू हो गया.

दरअसल, बशर अल-असद जो खुद एक शिया मुसलमान हैं, वर्ष 2000 में सीरिया के राष्ट्रपति बने थे. करीब एक दशक बाद सीरिया के सुन्नियों ने बशर सरकार पर शिया पक्षपात का आरोप लगाते हुए उसका विरोध शुरू कर दिया. हसन नसरल्लाह ने बशर अल-असद के शासन को तख्तापलट से बचाने में मदद के लिए हजारों हिजबुल्लाह लड़ाकों को सीरिया भेजा. एक अनुमान के मुताबिक सीरिया में करीब 50 हजार हिजबुल्लाह लड़ाके तैनात थे.