Iran America tension: वाशिंगटन और तेहरान के बीच संबंधों में तनाव चरम पर पहुंच गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को सख्त चेतावनी दी है कि अगर वह परमाणु समझौते पर रियायतें नहीं देगा तो उसे बड़े पैमाने पर बमबारी का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, ईरान भी पीछे हटने को तैयार नहीं है और मजबूती से मुकाबला करने की तैयारी कर रहा है.
रूस-चीन का समर्थन
ईरान को भरोसा है कि अगर अमेरिका हमला करता है तो रूस और चीन उसका साथ देंगे. ये दोनों ताकतवर देश ईरान के रक्षा कवच के रूप में उभर रहे हैं, जिससे वह अमेरिकी दबाव का सामना कर सकता है. ईरान की सबसे बड़ी ताकत उसकी आत्मनिर्भर सैन्य प्रणाली है, खासकर उसकी मिसाइल क्षमता.
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के वरिष्ठ कमांडर जनरल आमिर अली हाजीजादेह ने चेतावनी देते हुए कहा कि इस क्षेत्र में अमेरिका के कम से कम 10 सैन्य अड्डे हैं, जहां 50,000 सैनिक तैनात हैं. अगर वे हम पर हमला करते हैं तो उन्हें कड़ा जवाब मिलेगा. उन्होंने आगे कहा कि जो लोग शीशे के घरों में रहते हैं, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र में ईरान की कड़ी चेतावनी
ईरान ने केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहकर संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से भी अमेरिका को साफ संदेश भेजा है. संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत अमीर सईद इरवानी ने सुरक्षा परिषद को पत्र लिखकर अमेरिका की धमकियों को गैर-जिम्मेदाराना करार दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर अमेरिका या इस्राइल कोई आक्रामक कदम उठाते हैं, तो ईरान तुरंत और मजबूती से जवाब देगा.
मिसाइल अटैक का गहरा मकसद
ईरान का मिसाइल अटैक केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि इसके पीछे उसकी परमाणु रणनीति छिपी है. ईरान यह संकेत दे रहा है कि अगर हालात बिगड़े, तो वह परमाणु हथियार हासिल करने को मजबूर हो सकता है. ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के सैन्य अधिकारी डिएगो गार्सिया जैसे अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की रणनीति बना रहे हैं, जो अमेरिका के लिए गंभीर खतरा हो सकता है.
सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई के सलाहकार अली लारिजानी ने भी चेतावनी दी अगर अमेरिका या उसके सहयोगी देशों ने ईरान पर हमला किया, तो ईरान परमाणु हथियार हासिल करने को मजबूर हो जाएगा.