Plastic Pollution: दूध-पानी तक में घुल रहा जहर, क्यों बंटी हुई है दुनिया?

Plastic Pollution: माइक्रोप्लास्टिक और प्लास्टिक के छोटे कण अब दूध और पानी जैसी बुनियादी ज़रूरतों में भी पाए जा रहे हैं. वे न केवल हमारी हवा में बल्कि हमारे खून में भी प्रवेश कर चुके हैं. प्लास्टिक प्रदूषण अब पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर ख़तरा बन गया है.

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Plastic Pollution: माइक्रोप्लास्टिक और प्लास्टिक के छोटे कण अब दूध और पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं में भी पाए जा रहे हैं. ये न केवल हमारी हवा, बल्कि हमारे खून तक में घुस चुके हैं. प्लास्टिक प्रदूषण अब पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुका है.

प्लास्टिक पर वैश्विक समझौता क्यों अधर में?

दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की बैठक आयोजित हुई, जिसका उद्देश्य प्लास्टिक उत्पादन और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक वैश्विक समझौता बनाना था. लेकिन, एक हफ्ते की लंबी बातचीत के बाद भी सदस्य देशों में सहमति नहीं बन पाई. विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर असहमति के चलते बातचीत 2025 तक टल गई है.

किन मुद्दों पर अटका समझौता?

1. प्लास्टिक उत्पादन पर रोक

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के मुताबिक, 1950 के मुकाबले प्लास्टिक उत्पादन 230 गुना बढ़ चुका है.
  • 100 से अधिक देश चाहते हैं कि प्लास्टिक उत्पादन पर रोक लगाई जाए. लेकिन सऊदी अरब, ईरान और रूस जैसे तेल उत्पादक देश इसे आर्थिक रूप से नुकसानदायक मानते हैं.

2. वित्तीय सहायता का मुद्दा

  • विकासशील देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए वित्तीय सहायता की मांग की.
  • अमीर देशों ने इसे अस्वीकार कर दिया, जिससे स्वच्छ तकनीक और कचरा प्रबंधन के लिए जरूरी ढांचे का निर्माण रुक सकता है.

प्लास्टिक कचरे का बढ़ता संकट

2000 से 2019 के बीच प्लास्टिक कचरा 15.6 करोड़ टन से बढ़कर 35.3 करोड़ टन हो गया. अनुमान है कि 2060 तक यह तीन गुना होकर एक अरब टन हो जाएगा. इसमें सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का बड़ा हिस्सा है.

प्लास्टिक की सबसे बड़ी समस्या

प्लास्टिक का नष्ट न होना सबसे बड़ी चुनौती है. इसका केवल 9% ही रीसाइकल होता है. बाकी का हिस्सा जलाया जाता है या पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है, जिससे खतरनाक रसायन निकलते हैं. ये रसायन बांझपन, एलर्जी और कैंसर जैसे रोगों का कारण बनते हैं. प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है. यदि हम अभी नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा.