कुलभूषण जाधव को नहीं मिला अपील का अधिकार, पाकिस्तान ने फिर तोड़ा अंतरराष्ट्रीय कानून

कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय न्याय और मानवता की अनदेखी करता नजर आया है. पाकिस्तानी रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को दिए बयान में साफ कर दिया कि कुलभूषण जाधव को अपील करने का कोई अधिकार नहीं है.

Date Updated
फॉलो करें:

Kulbhushan Jadhav case: भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव का मामला एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है. पाकिस्तान सरकार ने अब दावा किया है कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का आदेश केवल राजनयिक पहुंच तक सीमित था और इसमें कानूनी अपील का कोई उल्लेख नहीं था.

यह बयान पाकिस्तानी रक्षा मंत्रालय ने देश की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है. इस बयान से न केवल अंतरराष्ट्रीय कानून की भावना पर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि पाकिस्तान की नीयत पर भी गंभीर संदेह उत्पन्न होता है.

ICJ का स्पष्ट आदेश

वर्ष 2019 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने भारत की याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान को आदेश दिया था कि वह कुलभूषण जाधव को राजनयिक संपर्क की अनुमति दे और उसकी सजा की निष्पक्ष समीक्षा और पुनर्विचार सुनिश्चित करे. ICJ के इस निर्णय का उद्देश्य यह था कि जाधव को निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया मिल सके. लेकिन अब तक पाकिस्तान ने न तो उसे अपील का वास्तविक अवसर दिया है और न ही मुकदमे की पारदर्शिता सुनिश्चित की है.

पाकिस्तान की रणनीति पर सवाल

इस पूरे घटनाक्रम का समय भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. जब पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट अपने ही नागरिकों को सैन्य अदालतों द्वारा दी गई सजा की वैधता की जांच कर रही है, उसी दौरान यह बयान सामने आया है. कई विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान अपने आंतरिक मामलों को अंतरराष्ट्रीय आलोचना से बचाने के लिए कुलभूषण जाधव मामले का उपयोग कर रहा है.

भारत का रुख

भारत ने हमेशा यह कहा है कि जाधव के खिलाफ लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और उन्हें उचित कानूनी सहायता भी नहीं दी गई है. भारत ने ICJ में भी यही तर्क दिया था कि पाकिस्तान ने वियना संधि का उल्लंघन करते हुए जाधव को राजनयिक संपर्क से वंचित रखा. अब जबकि पाकिस्तान एक बार फिर ICJ के निर्देशों की व्याख्या अपने अनुसार कर रहा है, भारत की चिंताएं और भी गहरी हो गई हैं.

कुलभूषण जाधव का मामला केवल एक व्यक्ति की कानूनी लड़ाई नहीं है, यह अंतरराष्ट्रीय न्याय, मानवाधिकार और पारदर्शिता की परीक्षा है. यदि पाकिस्तान ICJ के आदेशों की मनमानी व्याख्या करता है और निष्पक्ष अपील की व्यवस्था नहीं करता, तो यह न केवल न्याय का अपमान है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी साख को भी नुकसान पहुंचा सकता है.