बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय के अपहरण और हत्या की साजिश के आरोपों से जुड़े एक मामले में कोर्ट ने एक प्रमुख समाचार पत्र के संपादक को बरी कर दिया है. यह मामला 2015 का है और राजधानी ढाका की अदालत ने सोमवार को इस मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. कोर्ट ने बताया कि संपादक महमूदुर रहमान पर लगाए गए आरोप मनगढ़ंत और झूठे थे, और उन्हें निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया गया.
कोर्ट का फैसला
चौथे अतिरिक्त मेट्रोपोलिटन जज तारिक अजीज ने महमूदुर रहमान की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए अपहरण और हत्या की साजिश के आरोप पूरी तरह से झूठे और बिना किसी प्रमाण के थे. कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द करते हुए महमूदुर को बरी कर दिया. इस फैसले के बाद, महमूदुर ने अपनी बेगुनाही का दावा करते हुए कहा कि उन्हें आखिरकार न्याय मिल गया.
न्याय मिलने के बाद का बयान
कोर्ट के फैसले के बाद, महमूदुर रहमान ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, "आखिरकार मुझे न्याय मिल गया और मैं बेगुनाह साबित हो गया. मैं फासीवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखूंगा, जो पूरे देश का संघर्ष बन चुका है." उनका यह बयान इस बात का संकेत है कि वे आगे भी लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहेंगे.
सजा और अपील का इतिहास
पिछले साल, 17 अगस्त 2024 को ढाका की अदालत ने महमूदुर रहमान को उनके गैरमौजूदगी में सात साल की सजा सुनाई थी, साथ ही इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार शफीक रहमान और अन्य आरोपियों को भी समान सजा दी गई थी. महमूदुर ने इस फैसले के खिलाफ अपील की थी, जो अब अदालत द्वारा स्वीकार कर ली गई है.
साढ़े पांच साल बाद बांग्लादेश लौटे महमूदुर
महमूदुर रहमान को साढ़े पांच साल का निर्वासन झेलने के बाद बांग्लादेश लौटने पर ढाका में मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा था. इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था. यह मामला 3 अगस्त 2015 को दर्ज किया गया था.
साजिश का आरोप और घटनाक्रम
शिकायत के अनुसार, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के वरिष्ठ नेताओं ने शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय के अपहरण और हत्या की साजिश रची थी. आरोप के अनुसार, यह साजिश ब्रिटेन, अमेरिका और बांग्लादेश के कई स्थानों पर बनाई गई थी, जिसमें जॉय उस समय शेख हसीना के सलाहकार थे.
इस मामले में बांग्लादेश की अदालत ने अपने फैसले से यह साबित कर दिया कि किसी भी व्यक्ति को झूठे आरोपों से बचने का अधिकार है और न्याय की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की शॉर्टकट को मंजूरी नहीं दी जा सकती है.